कैसे करें गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा
भारत जैसे देश में गुरु को हमेशा से ही पूज्यनीय समझा जाता हैं और गुरु की पूजा का एक विशेष तरीका हैं जिससे आप अपने गुरु को खुश कर सकते हो | इस दिन गुरु की आराधन भी एक विशेष तरीके से होती है | आये हमारे साथ हम बताते हैं कैसे करे अपने गुरु का व्रत |
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रधा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति, अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं, अतः वे हमारे आदिगुरु हुए। इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है
जानिए कैसे करे 9 जुलाई को गुरु पूर्णिमा की पूजा
- सबसे पहले अपने गुरु स्थान पर जाये या जिन्होंने गुरु नही बना रखा वो निराश न हो उन के लिये भी गुरु पूजा की विधि हैं
- सबसे पहले अपने घर में साफ सफाई करे और एक स्थान पर जगत गुरु वेद व्यास जी की प्रतिमा लगाये या एक सफ़ेद कपड़ा लेकर उस पर पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण गंध से बारह-बारह रेखाएं बनाकर व्यासपीठ बनाएं।
- उस के बाद इस मंत्र का उचारण करे तत्पश्चात ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र से संकल्प करें।
- इस के बाद दशों दिशा में जल छिडके
- अब ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा, आवाहन आदि करें।
- सबसे पहले आप गुरु मंत्र का उचारण करे
गुर्रुब्रह्मï गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परमब्रह्मï तस्मै श्री गुरवे नम:।।
- इस के बाद आप गुरु की प्रतिमा पर फुल चढ़ाये
- इस के बाद आप एक दीपक जलाये देशी घी का
- अब आप गुरु के नाम की जोत जलाये और भोग लगाये
- और गुरु की आराधना करे और आरती करे और पुरे दिन गुरु के नाम का व्रत रखे
- इस के बाद आप गुरु के सामने हाथ जोड़ कर विनती करे की हें गुरु देव आप हमारी जिन्दगी से अंधकार को दौर करे और हमारे जीवन को साकार करे.
गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा
पूरे विश्व में आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन विधिवत गुरु की पूजा करने का विधान है। इस दिन हर शिष्य को अपने गुरु की पूजा कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं। गुरु वास्तव में कोई व्यक्ति नहीं, वरन् उसके अंदर निहित आत्मा है। इस प्रकार गुरु की पूजा व्यक्ति विशेष की पूजा न होकर गुरु की देह में समाहित परब्रह्म परमात्मा और परब्रह्म ज्ञान की पूजा है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व जानिए बदल सकती आप की किस्मत
अगर आप इस दिन अपने गुरु को प्रशन करते हैं तो आप पर गुरु की कृपा हमेशा बनी रहेगी | और गुरु के रहते हुए आप पर कोई संकट नही आ सकते | अध्यात्म में सूर्य रूपी ज्ञान के प्रकाश से सीधा साक्षात्कार न करके गुरु रूपी चन्द्रमा के माध्यम से लाभ उठाने का नियम है। सूर्य परम तेजस्वी है और चन्द्रमा परम शीतल। चन्द्रमा माध्यम है सूर्य की रोशनी का। उसी प्रकार गुरु भी माध्यम है परमात्मा के उस दिव्य विराट तेज का। चांद जब पूरा हो जाता है तो उसमें शीतलता आ जाती है। इस शीतलता के कारण ही चांद को गुरु के लिये चुना गया होगा। चांद में मां जैसी शीतलता एवं वात्सल्य है। इसलिये हमारे ऋषियों व महापुरुषों ने चांद की शीतलता को ध्यान में रखकर आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु को समर्पित किया है। अत: शिष्य, गृहस्थ, संन्यासी सभी गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। गुरु महिमा को इस स्तुति से वंदित किया गया है-