श्रावण (हरा भरा )प्रकृति में रचा-बसा त्योहार है। सिंधारा राजस्थान में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | सिंधारा , हरियाली तीज, मधुस्रवा तृतीया या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को राजस्थानी सिंधारा महोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस बार सिंधार महोत्सव 25 जुलाई को मनाया जायेगा । सिंधारा महोत्सव मुख्यतया महिलाओ का त्यौहार है | सिंधार के त्यौहार पर महिलाओ के मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है और विशेष शृंगार करती हैं इस त्यौहार पर सुहागन या नवविवाहित महिलाए आपस में या एक दूसरी महिला के हाथों में मेहंदी लगाती है | पुराने जमने में महिलाये राणी सती मंदिर में जाकर उनके हाथो में मेहंदी लगाती है |
सिंधारा महोत्सव का आयोजन कौन करता है
श्रावण शुक्ल द्वितीया को ही नवविवाहित स्त्रियां महिलाये अपने मायके जाती हैं | सिंधारा के दिन जहां उन्हें परिवारजन तीज का शगुन (सिंधारा) प्रदान करते हैं। इसमें सभी प्रकार के शृंगार संबंधी सामग्री ही होती है। इसे सिंघारा कहा जाता है। जिस युवती की सगाई या विवाह तय हो चुका होता है उसके ससुराल वाले तीज त्यौहार संबंधी सामान भेजा जाता है। अविवाहित युवतियां इस दिन अच्छा वर पाने की कामना के लिए व्रत रखती हैं। राजस्थान के के विभिन्न गाँवो व शहरो में तीज माता की सवारी भी निकाली जाती है। इसे पश्चिमी भारत में प्रमुखता से मनाया जाता है।
सिंधारा महोत्सव कैसे मानती है महिलाये
सिंधारा महोत्सव के दिन महिलाएं बड़े-बड़े वृक्षों में झूला आदि डाल कर सखियों के३ साथ झुला झूलती हैं और शिव-पार्वती के लोकगीतों को गाती हुई झुला झूलती हैं। इसके साथ-साथ ही इस दिन वृक्षों, हरी-भरी फसलों, नदियों तथा पशु-पक्षियों को भी पूजा जाता है । जबकि राजस्थान में इस दिन खेजड़ी/जाटी और तुलसी की पूजा की जाती है | कभी कभी यह त्योहार तीन-तीन दिन मनाया जाता था लेकिन अब समय की कमी के कारण लोग इसे एक ही दिन में ही मनाते हैं।
सुहागन स्त्रियां में व्रत का महत्व व परम्परा The Significance of Fast in Suhagan Women
सुहागन स्त्रियां खासकर नवविवाहित महिलाएं इस व्रत को बहुत महत्व मानती हैं। नवविवाहित महिलाएं अपने हाथो मेहंदी लगा कर विशेष शृंगार करती हैं| और अपने मायके या पीहर में शिव-पार्वती की विधिवत ढंग से पूजा अर्चना करती हैं। देखा जाए तो सनातन धर्म में हर त्योहार का व्रत महत्वपूर्ण होता है। महिलाये अपने आध्यात्मिकता को समाप्त करने के लिए ही इस व्रत, त्योहार का आयोजन करती है। इस उपवास से गृहस्थ आश्रम को और मजबूती मिलती है। शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो गृहस्थ आश्रम ही अन्य सभी आश्रमों का आधार है।